Jharkhand Vidhan Sabha Chunav 2024: झारखंड में बुधवार (20 नवंबर) को विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण की वोटिंग चल रही है. दूसरे चरण की 38 सीटों में से एक - झरिया विधानसभा - ऐसी है जहां देवरानी और जेठानी के बीच लड़ाई है. यह सीट देश की सबसे बड़ी कोयला बेल्ट में पड़ती है. झरिया की चुनावी जंग बड़ी दिलचस्प होती है. हो भी क्यों न, आखिर एक ही परिवार की दो बहुएं जो आमने-सामने होती हैं. झरिया से बीजेपी की उम्मीदवार रागिनी हैं, जो धनबाद के कद्दावर नेता रहे सूर्यदेव सिंह की बहू हैं. सिंह ने दो दशक से भी अधिक समय तक कोयला बेल्ट में राज चलाया. रागिनी का मुकाबला कांग्रेस की पूर्णिमा से है, जो सूर्यदेव सिंह के भाई राज नारायण सिंह की पुत्रवधू हैं.
देवरानी-जेठानी की चुनावी लड़ाई क्यों चर्चा में?
2017 में पूर्णिमा के पति नीरज की हत्या कर दी गई थी. मामले में चचेरे भाई संजीव - सूर्यदेव सिंह के बेटे और तत्कालीन झरिया विधायक - को आरोपी बनाया गया. संजीव की शादी रागिनी से हुई है. वह नीरज मर्डर केस में अब भी धनबाद जेल में बंद हैं. परिवार के करीबी लोगों का कहना है कि इसी वजह से यह लड़ाई और भी तीखी हो गई है.
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गाड़ियों की नंबर प्लेट से पहचान जाते हैं वोटर
झरिया के वोटर्स नारों या पार्टी के झंडों से पहचान नहीं करते कि रागिनी या पूर्णिमा में से किसका काफिला जा रहा है. वे तो बस नंबर प्लेट देखते हैं. अगर काफिले की हर गाड़ी के नंबर के आखिर में 7007 है तो मतलब पूर्णिमा नीरज सिंह का काफिला है. अगर नंबर के आखिर में 0045 है तो रागिनी सिंह का काफिला. देवरानी और जेठानी की इस जंग के बारे में अब पूरा झरिया जानता है.
एक-दूसरे से बिल्कुल नहीं होती बात
रागिनी को यह नहीं लगता कि कोई पारिवारिक झगड़ा है. उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा, 'ये मीडिया का बनाया हुआ कहानी है.' जब पूछा गया कि क्या उनकी पूर्णिमा से बात होती है तो रागिनी ने बेहद तल्खी से कहा, 'बिल्कुल नहीं'.
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एक परिवार के दो घरों की लड़ाई
देवरानी vs जेठानी से इतर, झरिया का चुनाव 'सिंह मैंशन' और 'रघुकुल' की लड़ाई भी है. यहां की राजनीतिक सत्ता 1977 में सूर्यदेव सिंह के विधायक बनने और 1991 में उनके निधन के बाद तीन और विधायकों को देने के बाद से सिंह मैंशन में लगभग चार दशकों तक केंद्रित रही. 2019 में सत्ता ने घर बदला और रघुकुल में चली गई, जब कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रही पूर्णिमा ने रागिनी को हरा दिया.
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